हो ना ,, ना होना
आकर्षण,कोई भी ..
जब मुझे खींचता है..
और यदि मै जानता हूँ; इसे पाना सरल नहीं....
मै कठिन प्रयास करता हूँ.
अभीष्ट पा लेने पर दो बातें हो जाती है:
एक तो प्राप्ति को छूता हूँ तो वह वैसा नहीं लगता, जैसा दूर से था..!
....और दुसरे ,
उस आकर्षण से गुजरते हुए,
स्वयं को एक कठिन, विकासशील जाल में पाता हूँ,
जो अनुभव को आकर्षण की प्रथम कल्पना से एकदम अलग कर देता है.
इसके उलट ; यदि किसी परेशानी में आ पड़ता हूँ, आकस्मिक ,
तो उससे पार पाते हुए लगता है जैसे
मै मुक्त हो रहा होऊं किसी अनदिखे जाल से .
समझ नहीं आता ;
...क्या होना ,कुछ ना होना है
...और ना कुछ होना ही,कुछ हो जाना है.........???
#श्रीश पाठक प्रखर
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