पुनर्पाठ...तुम्हारा..




(१)  

मै; तुम्हे शिद्दत से चाहता हूँ, 

पर तुम नहीं.  

आत्मविश्वास ने समाधान किया:

'सफल हो जाने पर कौन नहीं चाहेगा मुझे,,,?

"....पर उन्ही लोगो में पाकर क्या मै चाह सकूँगा ..तब..तुम्हे..? 



(२) 

तुमने जब टटोला 

तो मैंने महसूस किया.. 

अपना अस्तित्व  

सर पर हाथ प्यार से फेरा तुमने 

तो. महसूस किया मैंने अपना उन्नत माथा.. 

"पर मै जानता हूँ; तुम्हे पाने के लिए सीना चौड़ा होना चाहिए..."

#श्रीश पाठक प्रखर

टिप्पणियाँ

Ashutosh ने कहा…
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
हिन्दीकुंज
वाणी गीत ने कहा…
तुम्हे पाने के लिए सीना चौडा होना चाहिए
लाजवाब अभिव्यक्ति ....!!
हरकीरत ' हीर' ने कहा…
दोनों क्षणिकाए अच्छी लगीं .... तस्वीर उससे भी लाजवाब.....!!
शरद कोकास ने कहा…
कम पंक्तियों मे भी गहरे अर्थ हैं ।

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