ब्लॉग-जगत मे 'बात' : "बात की चूड़ी मर गई"
ब्लॉग-जगत मे 'बात' : "बात की चूड़ी मर गई" हम ब्लागर हैं. हम विचार चुनते हैं, बहुधा सोचते हैं..और देर-सबेर उसे पोस्ट मे तब्दील करते हैं..टिप्पणियाँ आती हैं...लोग कहते हैं कि चर्चा शुरू हो गई. अब हम टिप्पणियाँ कर रहे हैं. प्रति टिप्पणियाँ कर रहे हैं..हम टिप्पणी शायद विषय पर कर रहे हैं...वस्तुपरक होकर कर रहे हैं...आ हा हा..ना ना व्यक्तिपरक होने लगे ...चर्चा गुम नई चर्चा शुरू...तो ठीक है कुछ भी हो हमे क्या टिप्पणियाँ तो बढ़ी रही हैं....तो फिर क्या हुआ कि वो बात खो गई जिस पर कुछ कहना था, वह विचार गुम हो गया जिसे हमने चुना था कि कोई सार्थक बहस होगी और लेखन का दायित्व (?) पूरा होगा...तो अब हमारी ब्लॉग-आर्काइव मे बस पोस्ट बचते हैं , टिप्पणियाँ रह जाती हैं..बात-दर-बात, बात कुछ और ही बात मे तब्दील हो जाती है पर हमे क्या, हम तो दनादन लिखे जा रहे हैं...टिप्पणियों की सेंचुरी बनाते जा रहे हैं...वैसे भी यह हमारा ब्लॉग है..हमारी कलम है..दायित्व की चिंता से हमे क्या लेना-देना...हमे बात उठाना था...टिप्पणी पाना था...बात आगे बढ़े, बदल जाये, कहीं और पहुँच जाये..तो क्या...अपनी बला से...