लंबे लाल पहाड़
"इससे पहले कि सांस लूँ कुछ कहने के लिए साहब वे जान लेते हैं मेरी त्यौरियों से कि क्या कह डालूँगा अभी मै. इससे अधिक वे ये जान लेते हैं कि वह ही क्यूँ कहूँगा मै..! और फिर जब मै कहता हूँ..कुछ तो उन्हें नहीं दिखता मेरा लाल चेहरा, सुखें ओंठ, गीली-सूनी- धंसी आँखें, पिचके गाल, या और कुछ भी. वे मेरी बात में तलाशते हैं मार्क्सवाद, उदारवाद, बाजारवाद, नक्सलवाद, जातिवाद या फिर मजहबी कतरनें. सो सोचा है , कहूँगा नही उनसे अब कुछ. साँसे जुटाऊंगा , धौंकनी भर-भर कर ताकि घटे ना आक्सीजन उन लम्बे लाल ईर्ष्या-द्वेष के पहाड़ों को लांघते हुए. " #श्रीश पाठक प्रखर पेंटिंग साभार :Tsuneko Kokubo (स्रोत :गूगल इमेज)