संदेश

मई, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उमड़-घुमड़ रहे मेघ से श्याम

चित्र
             हाँ , जीवन में अवसर जो अविस्मरणीय हों ; सहसा ही मिलते हैं...आप उनकी आयोजना नहीं कर सकते ,  तैयार रह सकते हैं पर तैयारी नहीं कर सकते । अप्रत्याशिता उनका प्रधान रस है । योजना अगर गढ़ ली तो अवसर मिलने पर हानि-लाभ की वणिक बुद्धि उस अवसर विशेष का रस पीने लग जाती है । तो अच्छा ही हुआ कि श्याम जी से मिलने का अविस्मरणीय अवसर सहसा ही प्राप्त हो गया । कोई योजना नहीं...बस सहसा ही । निमित्त बन गए अपने सुशील जी. ..उन्हें धन्यवाद तो देना नहीं है...:) बचपन से ही हम जाने-अनजाने अनगिन रिश्तों में बंधे होते है । वैसे तो धरा के प्रत्येक जीव रिश्तों का मर्म समझते हैं पर अपने प्यारे देश में तो रिश्तों की बड़ी ही पवित्र अहमियत है । रिश्तों के जाने कितने बुनियाद हैं....पर तीन आधार मुझे समझ आते हैं: खून के , भाव के और विचार के । इन तीनों के अलग अलग महत्वों की तूलना करना बेमानी है क्योंकि ये तीनों रिश्ते हमारी इयत्ता को स्पर्श करते हैं और उसे प्रकट करने में मदद करते हैं । हम तीनों ही रिश्तों के बिना नहीं रह सकते क्योंकि व्यवहार में ये तीनों ...