साहित्य विभाजनकारी नहीं हो सकता, जब भी होगा जोड़ेगा.
साहित्य विभाजनकारी नहीं हो सकता , जब भी होगा जोड़ेगा.साहित्य शब्द कानों में पड़ते ही सहित वाला अर्थ दिमाग में आने लग जाता है. साहित्य में सहित का भाव है. कितना सटीक शब्द है. साहित्य शब्द में ही इसका उद्देश्य रोपित है. साहित्य विभाजनकारी नहीं हो सकता , जब भी होगा जोड़ेगा. इतना हर लिखने वाले को स्पष्ट होना चाहिए. इसीलिये जरुरी नहीं हर लेखन साहित्य में शामिल हो. मेरी दिक्कत ये है कि कुछ लोग साहित्य मतलब महज कविता कहानी समझते हैं. और इसे भी वो ' सब कुछ समझ सकने के गुरुर के साथ ' समझते हैं-मतलब ये कि उन्हें सही समझाना कठिन भी है. कविता मतलब भी वो कुछ यूँ समझते हैं कि एक लिखने की शैली जिसमें ख़ास रिदम और एक पैटर्न की पुनरावृत्ति होती है जिसकी विषयवस्तु अमूमन प्रकृति अथवा नारी की खूबसूरती होती है. कहानी मतलब भी कि एक नायक होगा..एक नायिका होगी. ज़माने से लड़ेंगे-भिड़ेंगे-फिर जीत ही जायेंगे.एक सीधी सी बात समझनी चाहिए कि किसी भी विषय-विशेष में उतनी ही गहराई और आयाम होते हैं जितनी कि ज़िंदगी की जटिलताएं गहरी होती हैं. इस तरह कोई भी विषय विशेष का महत्त्व किसी भी के सापेक्ष कमतर या अधिकतर नहीं ...