श्रीश की श्रीश से एक बात-चीत
श्रीश की श्रीश से एक बात-चीत कुछ यों हुई.....! (बात पुरानी है, पर यहाँ रखने का मन हुआ) "यार बुद्धिमान तो सब कुछ साक्षी भाव से लेते हैं। क्या खुश होना, क्या दुखी होना। अच्छा, तुम बताओ क्या चाहते हो....?" "चाहता हूँ, भौतिक जगत में भी सब ठीक ठीक कर लूँ, मेहनत करूँ, उपलब्धियां मिलें, लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरूँ, लोगों के काम आ सकूँ। और फिर राम जी का भी प्यार पा लूँ....." "पहले क्या पाना चाहते हो, बाद में क्या पाना चाहते हो...?" पहले माँ, बाप, परिवार, देश, समाज के लिए कुछ करना चाहता हूँ....उनके लिए फर्ज़ बनता है, मेरा..., फिर खुद को राम जी के चरणों में समर्पित करना चाहता हूँ। " "तो एक बार में एक काम निपटाना चाहते हो...पर ऐसा नहीं होता....! यही तो ज़िंदगी है....इसे आसान क्यूँ चाहते हो....ये क्यूँ आसान रहे.....सब तुम्हारी ईच्छा क्रम से अगर अनुक्रमित हो जाए तो तुम्हारे लिए इस ज़िंदगी में चुनौतियाँ क्या होंगी......? "क्यूँ सब कुछ आसान ना हो....? चुनौतियाँ जरूरी क्यूँ हैं....मै किसी चीज से भागने के लिए थोड़ी कह रहा हूँ...कर...