अब सवाल ज्यादा सुकून देते हैं.

मुझे पता है कि मै बस लिखने लगता हूँ. ईमानदारी से मुझे शिल्प का अभ्यास नहीं है. गलतियाँ बर्दाश्त करियेगा..और बदले में मुझे एक मुस्कान दीजियेगा...


अब सवाल ज्यादा सुकून देते हैं.

अब सवाल ज्यादा सुकून देते हैं.
राख, शोलों से ज्यादा जुनून देते हैं.

यार तुम,खिलो सहर में भी शायद,
गैर वो हर वक़्त चुभने का यकीं देते हैं.

हमारी खुशियों में भी बेशक हंसा ना पाते हो,
तुम्हारे कह-कहे आँखों को भरपूर नमी देते हैं.

अँधेरे भी ना दे सको तुम मुझे सोने के लिए,
बेदर्द तन्हाईयाँ ही इसके लिए क्या खूब जमीं देते हैं.

मेरी साख पर नज़र है शिद्दत से तुम्हारी,
तुम्हारी कनखियाँ मुझे फिरसे वजूद देते हैं.

#श्रीश पाठक प्रखर 

चित्र साभार:गूगल 

टिप्पणियाँ

अँधेरे भी ना दे सको तुम मुझे सोने के लिए,

बेदर्द तन्हाईयाँ ही इसके लिए क्या खूब जमीं देते हैं.

मेरी शाख पर नज़र है शिद्दत से तुम्हारी,

तुम्हारी कनखियाँ मुझे फिरसे वजूद देते हैं.

Waah, बहुत सुन्दर, ख़ूबसूरत पंक्तियाँ !
मेरी शाख पर नज़र है शिद्दत से तुम्हारी,
तुम्हारी कनखियाँ मुझे फिरसे वजूद देते हैं.
बहुत खूब श्रीश जी सुन्दर रचना है शुभकामनायें
Arvind Mishra ने कहा…
है तो जबरदस्त मियाँ युवा तुर्क (बकरीद है ना आज ) -मगर न जाने मुझे क्यूं ऐसा लागे है की कनखियों की जगह टहनियों के विस्थापन का भी आनंद उठाया जा सकता है -मित्र ट्राई कर सकते हैं !
Dr. Shreesh K. Pathak ने कहा…
@ arvind जी
जी गलती उस लाईन में ही हो गयी थी..होना ये था..

मेरी साख पर नज़र है शिद्दत से तुम्हारी,
तुम्हारी कनखियाँ मुझे फिरसे वजूद देते हैं.
श्रीश भाई.... बेहतरीन अभिव्यक्ति के साथ बहुत सुंदर लगी आपकी यह कविता....
गहरे ख्याल और हमारी मुस्कान .........साथ चलते रहें
मेरी साख पर नज़र है शिद्दत से तुम्हारी,
तुम्हारी कनखियाँ मुझे फिरसे वजूद देते हैं.....
yun churayee nazar unki sadgee to dekhiye...
bazam me meri zanib ishara kar diya....
दर्पण साह ने कहा…
शिल्प ??

kaise baat karte hain jaanab??

nadi behne ke liye koi shilp dhoondti hai bhala??

isliye hi to khud shilp ho jaati hai.
Rules ka shilp hota hai, 'setting the rules'(benchmark) ka nahi hota, koi aur aapki poem main ye tippani karta (shayad) main hi, to phir bhi utni buri baat nahi thi par apni poem main khud hi...
...aap likho aur auron ko decide karne do shilp !!

bhai abhi aapko daanthne aaiya tha poem ke baare main phir kabhi kahoonga.
रंजू भाटिया ने कहा…
हमारी खुशियों में भी बेशक हंसा ना पाते हो,
तुम्हारे कह-कहे आँखों को भरपूर नमी देते हैं.

बहुत खूब ...सवाल वाकई ज्यादा सकूनदेते हैं बेहतरीन भाव
अजय कुमार झा ने कहा…
वाह श्रीश जी बहुत खूब ..
बहुत ही सुंदर सभी एक से बढ के एक ..
लिखते रहिये हुजूर

अजय कुमार झा
Gyan Dutt Pandey ने कहा…
बड़ी झकाझक टेम्प्लेट है!
बड़ी झकाझक टेम्प्लेट है!


हाँ जी !!
बड़ी झकाझक टेम्प्लेट है!







और पोस्ट के भाव भी!!
यहाँ तो हाँजी-हाँजी चल रही है। मेरी भी हाँजी लेलो भाई। अच्छा है। बधाई।

लेकिन मैं लैकोनिक नहीं हो पा रहा हूँ।

ग़जल में ‘मतले का कानून’ सिरे से ही तोड़ दिया गया है। रदीफ़ और काफ़िया का मिलान जरूरी था मेरे दोस्त, और उससे भी जरूरी शब्दों के लिंग का ज्ञान। ‘तनहाइयाँ’ और ‘कनखियाँ’ के साथ ‘देते हैं’ बिल्कुल अटपटा है।

थोड़ा समय यहाँ (नीचे के लिंक पर) दे दीजिए तो अच्छा लिखने लगेंगे।
http://kavita.hindyugm.com/2008/10/reopening-ghazal-classes.html

ज्ञान जी इसीलिए टेम्पलेट देखने लगे। गजल और कविता की ऐसी फजीहत देखकर कोई भी बगलें ही झाँकेगा न...?
मनोज कुमार ने कहा…
आपका सृजनात्मक कौशल हर पंक्ति में झांकता दिखाई देता है।
देखिये यहा भी पान्डे जी चौका मार गये :) हा हा हा ...

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