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फ़रवरी, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रिश्ता

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"साँझ ढले,पंछी चले,निज-निज रैन बसेरा। मनवा कहे,ऐसे रहे,माँ-बेटे का फेरा। होत सवेरा उड़ जाती वो,जाती लाने चारा। दिनभर चुगकर वो लाती है,खायेगा उसका प्यारा। आसमान में उड़-फिरकर वो ;साँझ को आ जाए डेरा..मनवा कहे....! रोज सवेरे उड़ जाती  माँ , छोड़  घास   का घेरा। दिनभर अकेला वो डर जाता,देख शाम घनेरा। पल में सुनकर वो खुश हो जाए, आती माँ का टेरा.. मनवा कहे .....!!" #श्रीश पाठक प्रखर 

खता

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".........खता तबसे शुरू हो गई बेसाख्ता; ......अजमाना जबसे जनाब ने शुरू किया......." #श्रीश पाठक प्रखर 

तेरा ना होना

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".....आज इक बार फिर तेरा    ना होना नागवार गुजरा है.   वीरानी शाम में आशिक हवाओं ने मुझे बदनाम समझा है. पुराने जख्म अब पककर,मलहम से हाथ चाहेंगे. सनम आ जाए महफ़िल में ,दुआं दिन रत मांगेंगे. अभी इक दर्द का लश्कर सीने के पर उतरा है ! कहूँ साजिश सितारों की या फिर बेदर्द वक़्त ही है सनम ने ख़ुद मेरे लिए जुदाई की तय सजा की है. कशमकश हो गई बेदम,हवाओं पर आसमां का पहरा है !!" #श्रीश पाठक प्रखर 

हमारा जमाना ....आजकल के बच्चे

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" .....बूढे कामचोर काका का   महीने में तीसरी बार टूटा चश्मा बनवाकर .. बेराजगार मझला घर में घुसता हुआ  काका का फ़िर वही प्रलाप सुना  '......हमारा जमाना ....आजकल के बच्चे.....'..! " #श्रीश पाठक प्रखर 

डॉग

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"...मुंबई टेरर अटैक के बाद,  जबकि भारत जनवरी की ठंडक में बस ठिठुर रहा है,  विश्व में दो डॉग की चर्चा है.  दोनों से रिश्ता है,किसी तरह का हमारा.  एक अंडर डॉग है,दूसरा स्लम डॉग:ओबामा और जमाल . .....इससे आगे केवल झूठ लिखूंगा; क्योकि हम रिश्ता खोज लेते है ,..,केवल...... ......,,,...तो नही लिखूंगा......" #श्रीश पाठक प्रखर

....वो लड़कियां

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पाँव ; फूल पर आ गया ,  क्योंकि वो 'गिरा' हुआ था.  ......पर ये ख़ुद तो नही गिरा होगा . ..इसका सौन्दर्य ,इसका घाती.  तोड़ा; पर सजाया नहीं इसे कहीं.  ...मुरझाना-सूखना तो सहज था;  पर इस तरह,रौदा जाना .....  ,,...किसी ने इसे रास्ते में गिरा दिया. ..,, ,..'ठीक उन लड़कियों की तरह......................! #श्रीश पाठक प्रखर

चैटिंग

अगल-बगल बंद केबिनों में   दूर दोस्ती तलाशते लोग   प्रति घंटे मात्र १० रुपये पर व्यस्त थे.  नजदीकियों से नजदीकियां बढ़ाना   महंगा बहुत हो गया है शायद. #श्रीश पाठक प्रखर

तो फिर तुम्हारी याद आती है...परम !

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....कभी जब कुछ अलग सा अनुभव होने लगता है,  महसूस होने लगती है,हवा की आवाज.., गूंजने लगता है सारा परिवेश,  किसी अनुगूँज से ! घटने लगता है रोम रोम में एक शंखनाद ,  अंतस में झंकृत होने लगता है एक स्वरमय प्रस्फुटन ,  परिचय पाने लगता है मन, नीरवता के सौन्दर्य से ,  खुलने लगता है, हृदयपट स्वतःस्पंदन से  जब शून्य में प्रेरणा पल्लवित होने लगती है... तो फिर तुम्हारी याद आती है...परम ! #श्रीश पाठक प्रखर