रिश्ता

"साँझ ढले,पंछी चले,निज-निज रैन बसेरा। मनवा कहे,ऐसे रहे,माँ-बेटे का फेरा। होत सवेरा उड़ जाती वो,जाती लाने चारा। दिनभर चुगकर वो लाती है,खायेगा उसका प्यारा। आसमान में उड़-फिरकर वो ;साँझ को आ जाए डेरा..मनवा कहे....! रोज सवेरे उड़ जाती माँ , छोड़ घास का घेरा। दिनभर अकेला वो डर जाता,देख शाम घनेरा। पल में सुनकर वो खुश हो जाए, आती माँ का टेरा.. मनवा कहे .....!!" #श्रीश पाठक प्रखर